जब मैं “स्कूल” शब्द सुनता हूँ, तो मेरे दिल में बचपन के डर और दर्द की कई यादें उमड़ आती हैं। मैं खुद अपने स्कूल के दिनों को भूल नहीं सकता, जहाँ मेरी सिर्फ़ इस वजह से मार पड़ती थी कि मेरी शक्ल “ठीक” नहीं थी। बोलने, हंसने या अपनी बात कहने पर मुझे डाँटा जाता था। मारना, डाँटना हमारे लिए आम बात थी।
स्कूल में होने वाली शारीरिक सज़ा और डाँट मेरे मन में गहरे घाव छोड़ गए। मेरे लिए यह एक निरंतर डर का माहौल था, जो पढ़ाई पर भी असर डालता था।
शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मनोवैज्ञानिक प्रभाव
मनोविज्ञान की भाषा में, ऐसे अनुभव बच्चों के मस्तिष्क के “अमिगडाला” हिस्से को प्रभावित करते हैं, जिससे वे तनाव और डर से ग्रस्त हो जाते हैं। इससे उनकी सीखने की क्षमता कम हो जाती है।
UNICEF की रिपोर्ट (2007) के अनुसार, भारत में 65% बच्चों ने स्कूल में किसी रूप में शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न का सामना किया है।
स्कूल के बाहर: ट्यूशन और कोचिंग का भारी दबाव
स्कूल की घंटी खत्म होते ही ट्यूशन और कोचिंग की घंटियाँ बजती थीं। स्कूल के 6-7 घंटे पढ़ाई के बाद भी ट्यूशन में लगातार पढ़ाई ने मुझे थका दिया।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे (NMHS, 2016) के अनुसार, 10-19 वर्ष के लगभग 9.8% बच्चे मानसिक दबाव और चिंता से ग्रस्त हैं, जिनमें पढ़ाई का बोझ मुख्य कारण है।
फीस का बोझ और परिवार पर दबाव
स्कूल की बढ़ती फीस मेरे परिवार के लिए आर्थिक तनाव का कारण थी। इस वजह से घर का माहौल भी तनावपूर्ण हो जाता था, जो मुझे भी प्रभावित करता था।
एनआईटीआई आयोग के 2020 के अध्ययन से पता चलता है कि आर्थिक बोझ के कारण भारत के कई बच्चे शिक्षा बीच में छोड़ देते हैं।
अधूरी सुविधाएँ: टॉयलेट, खेल, और लड़कियों के लिए असमानता
हमारे स्कूल में साफ-सुथरे टॉयलेट नहीं थे, खेल के लिए उपकरण कम थे, और लड़कियों के लिए अलग खेल सुविधाएं बिल्कुल नहीं थीं। इससे लड़कियों को स्कूल में असहज महसूस होता था।
UDISE+ 2022 रिपोर्ट बताती है कि 30% से अधिक सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट नहीं हैं।
“पढ़ाई तभी होगी जब मारेगा” — एक गलत सोच
माता-पिता और शिक्षक दोनों अक्सर बच्चों को डराकर पढ़ाई करवाते हैं। यह डर आधारित शिक्षा बच्चों की रचनात्मक सोच को दबा देती है।
Educational Psychology Journal (2019) के अध्ययन में पाया गया कि डर से प्रेरित शिक्षा बच्चों की समस्या-समाधान क्षमता को प्रभावित करती है।
असफलता: छात्र की नहीं, शिक्षक और सिस्टम की
मैं जब फेल होता था, तो लगता था मैं असफल हूँ, लेकिन सच यह है कि शिक्षा प्रणाली और शिक्षकों की असफलता थी जो बच्चों को असमर्थ बनाती है।
ASER 2023 रिपोर्ट बताती है कि कई स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता इतनी कम है कि छात्र मूल बातें भी समझ नहीं पाते।
मेरे लिए स्कूल का आखिरी दिन — सबसे बड़ा सुख
स्कूल का आखिरी दिन मेरे लिए सबसे खुशियों भरा दिन था। जैसे मैंने सारी बेड़ियां तोड़ दी हों। यह दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख था।
क्यों घर पर पढ़ाई बेहतर विकल्प है?
घर पर पढ़ाई बच्चे को डर, तनाव, और अनावश्यक दबाव से बचाती है। बच्चे अपनी गति से, आराम से, और रुचि के अनुसार सीखते हैं। यह उनकी मनोस्थिति और सीखने की क्षमता दोनों के लिए बेहतर होता है।
संक्षिप्त आंकड़ों का सारांश
| विषय | आंकड़े/रिपोर्ट्स |
|---|---|
| शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न | 65% बच्चे (UNICEF, 2007) |
| मानसिक स्वास्थ्य दबाव | 9.8% बच्चे (NMHS, 2016) |
| आर्थिक कारण से स्कूल छोड़ना | NITI Aayog, 2020 |
| लड़कियों के लिए टॉयलेट की कमी | 30% से अधिक स्कूल (UDISE+, 2022) |
| पढ़ाई की गुणवत्ता में कमी | ASER रिपोर्ट, 2023 |
अंत में
मेरे अनुभव और आंकड़े दोनों बताते हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बच्चों के लिए कई गंभीर समस्याएँ हैं — शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, शिक्षा की गुणवत्ता की कमी, आर्थिक बोझ, और असमानताएँ। इन सबके चलते घर पर पढ़ाई, सही संसाधन और सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने का विकल्प बच्चों के लिए कहीं बेहतर साबित हो सकता है।
अगर हम बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सचमुच प्रयास करना चाहते हैं, तो हमें शिक्षा प्रणाली में गहराई से बदलाव लाना होगा और साथ ही माता-पिता, शिक्षक और समाज की सोच में भी परिवर्तन लाना होगा।